Friday 5 August 2016

दर्द का गुज़र जाना

दर्द का हद से गुजर जाना है दवा हो जाना। सुना है कई बार, सच है या नहीं कभी जाना नहीं।

मैने तो हमेशा दर्द को हर पल बढ़ते देखा है मगर केवल तब तक जब तक उससे निजात पाने की उम्मीद बाकि हो। कोशिशें जारी रहती है सब कुछ ठीक करने की और हर असफलता दुःख भी देती है मगर उम्मीद ही है जो फिर से नयी कोशिश के लिए प्रेरित करती है।

जिस दिन ये उम्मीद ख़त्म उस दिन से दर्द की उल्टी गिनती शुरू। जब कुछ बदल ही नहीं सकता, जब दर्द ही नियति है तो दिल और दिमाग परिस्थितियों के साथ तारतम्य बिठाने लगते हैं, उन हालात में भी खुद को खुश रहना सिखा देते हैं। या खुद को ख़त्म करना ही रास्ता नजर आता है मगर वो समाधान नहीं केवल भागना है।

बस तय आपको करना है कि आपकी उम्मीद कितनी है, और आपकी इच्छा क्या है। अगर आप खुश रहना चाहते हैं तो रह लेंगे वरना दुनिया की कोई ख़ुशी ऐसी नहीं जो आपको खुश कर सके जब तक आप अपने दुखों को ढोते रहोगे।