Thursday 5 May 2016

अकेली खुशियाँ

खुशियाँ इतनी कमजोर होती हैं कि बहुत जल्दी मर जाती हैं और गम हमेशा जिन्दा रहता है, चाहे चेतन हो या अवचेतन मन, दर्द हमेशा सही मौके की तलाश में छुपा रहता है। जैसे ही अपने अनुकूल माहौल पाता है बाहर निकल आता है। आप अकेले में बैठ कर मुस्कराने वाले कम लोगों को पाएंगे, अधिकतर लोग अकेले में रोना पसंद करते हैं पुरानी बातों को पुरानी यादों को याद कर के, उनके जुदा होने के अहसास से अक्सर आँखे नम हो जाया करती हैं। गम इकठ्ठा होते रहते हैं, एक गम के साथ हजारों दूसरे गम घेर लेते हैं जबकि खुशियाँ निहायत ही अकेली होती हैं। आप एक ख़ुशी पर एक बार ही खुश हो सकते हो पर गम इतने टिकाऊ होते हैं कि आप एक ही गम को याद कर के बार बार रो सकते हो, दुखी हो सकते हो। 

Wednesday 4 May 2016

मोहब्बत का फ़साना

कई बार ऐसा हुआ है कि एक अंतहीन पीड़ा ज़ेहन में घर कर जाती है। कारण सिर्फ इतना होता है कि जो चीज़ जिस वक्त मिलनी चाहिये तब नहीं मिलती, फिर मिल भी जाये तो उसकी कीमत मिटटी से भी कम हो जाती है। प्यास के वक्त तो पानी भी अमृत लगता है और बिना प्यास अमृत का भी कोई मोल नहीं।
जब भावनात्मक सम्बल, सहयोग और साथ की जरुरत हो और मिल जाये तो इंसान हर परिस्थिति से उबर सकता है मगर कोई तब साथ देने आये जब व्यक्ति भावनात्मक रूप से शून्य हो चुका हो तब उस साथ का होना महत्वहीन है। अकेलापन एक हद तक तकलीफ देता है उसके बाद वो आदत बन जाता है, फिर किसी का साथ निभाना भी मुश्किल हो जाता है, अकेला इंसान साथ छूट जाने के एक अनजाने डर से रिश्ते बनाने से भी डरने लगता है।
मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं ये सब बातें अभी क्यों कर रहा हूँ मगर इतना तय है कि कुछ बातें बहुत तकलीफ देती है, जानता हूँ कि वक्त सब कुछ ठीक कर देगा मगर जब जख्म दर्द देना बंद कर दें तो मरहम का क्या काम। जब रौशनी की कोई किरण दिखती है तो इंसान चलना शुरू कर सकता है मगर जब आगे सिर्फ नाउम्मीदी का अँधेरा हो तो कदम आगे बढ़ने का साहस नहीं जुटा पाते।
अब तो बस यही ज़िद है कि मंजिल को आना है तो खुद चल कर आये मेरे पास, मैं न तो कदम बढ़ाऊंगा और न ही कोई कोशिश करूँगा। अब परीक्षा मेरी किस्मत की है, मेरे ईश्वर की है और मेरे जज़्बातों की असलियत की है। मेरी भावनाएं अगर सच्ची होंगी, मेरे ज़ज़्बात अगर मासूम होंगे, तो अहसास पंहुचेंगे उस जगह तक जहाँ से जवाब आये।
अब ज़िद ये दिलों में कि देखेंगे
अंजाम ऐ मोहब्बत क्या होगा

Tuesday 3 May 2016

अंतर्मन का संघर्ष

जिन तन्हाइयों ने हमेशा साथ दिया, जिन यादों ने जीने को सहारा दिया, उन्हें ही मिटाना होगा ताकि जगह मिल सके एक नए पौधे को पनपने को। हालाँकि बहुत मुश्किल होता है बंजर जमीन की छाती में हल घोंप कर उसे उपजाऊ बनाना ताकि पौधे को दुनिया देखने का अवसर मिल सके मगर जब वो बीज ही विरोधी हो जाये, उगने से मना करने लगे तो बहुत तकलीफ होती हैं जिसे शब्दों में बयां करना मुमकिन नहीं। लगता है जैसे सारी मेहनत पर पाला पड़ गया हो। सब्र और उम्मीद तभी तक रखी जा सकती है जब तक कोई इच्छाशक्ति दिखाई दे वरना तो बस ढोया जा सकता है रिश्तों की लाश को उम्र भर।
काश कि कोशिशों पर एक नजर डाली गई होती, काश कि गम बांटने की शुरुआत की गई होती। वैसे तो गम भी उसी से बांटे जाते हैं जिसे दिल से अपना माना जाये। खुशियां तो औपचारिक रिश्तों में भी बंटती ही हैं।
खैर वक्त से बड़ा बलवान कोई नहीं। अच्छे अच्छे रिश्तों को ठीक करने और गलतफहमियों को ठीक करने में वक्त का कोई सानी नहीं। जहाँ सारी कोशिशें हार जाती हैं वहां वक्त ही एकमात्र सहारा बचता है। आखिरी फैसला वही करता है। देखते हैं क्या होता है, वक्त कहाँ ले जाता है, दिलों को दूर करता है या गलतफहमियों को।