Wednesday 19 August 2015

नागपंचमी

इनकी मृत आत्माओं को आओ फिर से जिलाएँ हम
आज नागपंचमी है यारों इनको दूध पिलाएँ हम
तोप, कोयला या मिट्टी हो, सब कुछ पच जाता इनको
भर जाये इनका मन आखिर, ऐसा क्या खिलाएं हम।
डरते नहीं ये ईश्वर से भी ऐसा मुझको लगता है
एक बार चलो तो आज, इन्हें इनसे ही मिलाएं हम।
फ़र्ज़ भुला बैठे हैं जो अब, सत्ता के गलियारों में
इस कुर्सी के असली मालिक इनको याद दिलाएं हम।
बहुत हो गया अब दुःख सहना, आस्तीन के लोगों से
इन लोगों के बिलों में घुस कर इनको आज जलाएं हम।
--------------विकास पुरोहित "पूरवे"