Sunday 31 March 2013

व्यंग्य कविता


I am back with a new flavour poem representing my views on the social system in our country. 

Wednesday 27 March 2013

कोई ऐसा काम करूँ मैं, एक मरुँ एक लाख बनूँ मैं


रक्त मेरा आज क्यूँ लगने लगा है खौलने 
हर दिन, घडी, हर पल लगा है जिंदगी को तौलने 
रास्ते हज़ार है तो लाख है रूकावटे 
रुकना नहीं है, दिल से मेरे रही है आहटें 
आहटों में मुझको मेरा अक्स है पुकारता 
रुक ना जाऊं, थक ना जाऊं, बस यही है चाहता 
चलना है मुझको अनवरत, मंजिल की राह अब चुनूँ मैं 
कोई ऐसा काम करूँ मैं, एक मरुँ एक लाख बनूँ मैं

दुनिया के सारे रास्तों की अब हदों को तोड़ दूँ 
इंसान को इंसानियत से अब सदा को जोड़ दूँ 
जोड़ दूँ बिखरे हुए बैठें हैं अब जो राह मे
हौसलों को छोड़ कर मंजिल की है जो चाह मैं 
आसमां को पाने की ललक जो उनमे डाल दूँ 
बिखरे हुए सुरों से सबको एक नई मैं ताल दूँ 
नींद से जागा हूँ अब तो, अब कोई तो ख्वाब बुनूँ मैं 
कोई ऐसा काम करूँ मैं, एक मरुँ एक लाख बनूँ मैं

जिंदगी है नाम जीने का, नहीं है काटना 
काटना है अब ग़मों को, जिंदगी है बाटना 
जिंदगी है देश की, अब देश पे लुटाऊं मैं 
ख्वाब तिरंगे को अब कफ़न मेरा बनाऊं मैं 
मिट भी जाये सांस मेरी, अब वतन के वास्ते 
देशभक्तों संग चलूँ मैं, मेरे अंतिम रास्ते 
आखिरी मुकाम पे मिटटी हो, इन्कलाब बनूँ मैं 
कोई ऐसा काम करूँ मैं, एक मरुँ एक लाख बनूँ मैं

Friday 22 March 2013

मैं समय का बहता दरिया हूँ

ना गुजरी बाते कहता हूँ, ना बीते सपने बुनता हूँ...
मैं समय का बहता दरिया हूँ, बस आज के पल में रहता हूँ...

कहना सुनना सब हो ही चुका, बाकी कुछ भी रखता हूँ..
खुली हुई किताब हूँ मैं, पर्दों में ना खुद को रखता हूँ..

होता है सब अच्छा ही सदा, यह बात दिल में रखता हूँ..
फूलो का मैं एक बाग़ हूँ जो, काटों की जगह भी रखता हूँ...

बीते लम्हों पर रोने का, वक़्त नहीं रखता हूँ मैं..
आँखों में सपने जीवन के और दिल में जज्बा रखता हूँ..

Friday 1 March 2013

चाहूँ अब मैं कुछ भी नहीं


सब कुछ है तो सही मगर लगता जैसे कुछ भी नहीं 
क्या तुम ही हो मेरी सब कुछ, क्या तुम बिन मैं नहीं 
यादों में तो हो, मेरी बातों में भी हो 
मेरी जीने की वजह क्या तुम बिन कुछ नहीं 
हर लम्हा मुझमे तुम, जीता हूँ संग तुम्हारे 
मिलना हो या ना हो, चाहे जीते दिल या हारे 
रहोगी तुम आखिर तक, साँसे हैं मेरी जब तक 
सुनती हो मेरी बातें, पर क्यूँ कहती कुछ नहीं 
चाहे हूँ नहीं मैं अब तो, तेरी जिंदगी में शामिल
शायद देर कर दी मैंने, बनने के तेरे काबिल  
अफ़सोस क्यूँ करूँ मैं  तेरे जुदा होने का 
क्या बिन मिले भी उम्र भर, ये प्यार कुछ नहीं  
चल करते हैं अब ये सौदा हम पूरी जिंदगी का  
तेरी यादे मेरा जीवन, मेरा दिल, तुम धड़कन 
तेरा सब कुछ, मेरी तुम, उन तस्वीरों में हम तुम 
रातें मेरी ख्वाब तेरे, ख़्वाबों में तू पास मेरे 
हर चेहरे में तू हो बस, देखूँ मैं खुद को भी जब 
इतना सब कुछ तो है अब फिर भी तू जो पास नहीं 
सब कुछ है तो सही मगर लगता जैसे कुछ भी नहीं 
पर खुश हूँ अपनी दुनिया में,चाहूँ अब मैं कुछ भी नहीं 
चाहूँ अब मैं कुछ भी नहीं