किसी की जान
लेकर बेफिक्री से
कैसे जीते हैं
ये कौन लोग
हैं जो इंसानियत
का लहू पीते
हैं
माफ़ी मांग लेने से नहीं जाते दर्द
लौट कर कभी
ये बात वही समझेंगे जिन पर वो
पल कभी बीते हैं
जायज़ ठहराते हैं अपनी बात को धर्म
की खातिर
कोई पूछे तो ज़रा इस धर्म को ये
कहाँ से सीखे हैं
आँखे खोलोगे तो दिख जायेगा हर
जर्रे में वो ऐ दोस्त
जिसे आसमान में बिठा रखा है वो
असल में नीचे है
जीतेगी आखिर में ये अमन की फसलें
ही एक दिन
सूख जायेंगे वो पौधे जो तुमने
नफरतों से सींचे हैं