क्यूँ देखते हो हर बात
में सिर्फ
अपना अक्स
वो दौर बीत चुका है
जब तुम
ही दुनिया
थे
हर बात शुरू होती थी
सिर्फ तुमसे
और सारी कोशिशें भी थी
तुम्हे पाने की उम्मीद से
ही
हां ये सही है कि
कोई गलती
नहीं है
तुम्हारी
मगर ये भी उतना ही
सही
कि बदल चुके हैं अब
हालात
दिल तो वही है मगर
उसे आदत
नहीं
तुम्हे किसी और के साथ
देखने की
अकेला रह सकता है, खुश
ना सही
मगर मशगूल अपनी धुन में ही
जो कहता हूँ वो मैं नहीं होता
वो शख्स कोई और है
चाहे रहता हो मुझ में ही
उसकी बातों से चाहे तुम्हे लगे
मगर निशाना होता हूँ मैं ही
छोड़
रखा है
सब कुछ
वक्त के
भरोसे
तुम्हे दिया है मौका
ताकि आ सके फिर से हसीं
देखी थी तुम्हारी तस्वीर उस शख्स के साथ
लगा जैसे वक्त लगा रहा है मरहम
चेहरे से थोड़ा खुश लग रही थीं तुम
उसके साथ वो तुम्हारा लिखा "हम"
बस उस दिन के बाद रोक लिया खुद को
रोक लिया फिर से जुड़ने से इस पुल को
रोक लिया इस नदी में बहने से खुद को
डूबना बेहतर लगा
सूखे किनारे पर पहुंचने से
और तुम्हे लगा कि मैं बदल गया
बदला नहीं बस इतनी सी बात है
तुम्हे गिरता देखने से पहले संभल गया
और हां एक आखिरी बात दोहराऊंगा फिर से
तुम हर बात में बिलकुल सही थीं
मैं कुछ भी लिखूं मगर
तुम्हारी कुछ भी गलती नहीं थी
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