Friday 9 May 2014

तुम्हारी कुछ भी गलती नहीं थी

क्यूँ देखते हो हर बात में सिर्फ अपना अक्स
वो दौर बीत चुका है जब तुम ही दुनिया थे
हर बात शुरू होती थी सिर्फ तुमसे
और सारी कोशिशें भी थी
तुम्हे पाने की उम्मीद से ही 
हां ये सही है कि कोई गलती नहीं है तुम्हारी
मगर ये भी उतना ही सही
कि बदल चुके हैं अब हालात
दिल तो वही है मगर उसे आदत नहीं
तुम्हे किसी और के साथ देखने की
अकेला रह सकता है, खुश ना सही
मगर मशगूल अपनी धुन में ही
जो कहता हूँ वो मैं नहीं होता
वो शख्स कोई और है
चाहे रहता हो मुझ में ही
उसकी बातों से चाहे तुम्हे लगे 
मगर निशाना होता हूँ मैं ही 
 छोड़ रखा है सब कुछ वक्त के भरोसे
तुम्हे दिया है मौका
ताकि आ सके फिर से हसीं

देखी थी तुम्हारी तस्वीर उस शख्स के साथ
लगा जैसे वक्त लगा रहा है मरहम
चेहरे से थोड़ा खुश लग रही थीं तुम
उसके साथ वो तुम्हारा लिखा "हम"
बस उस दिन के बाद रोक लिया खुद को
रोक लिया फिर से जुड़ने से इस पुल को 
रोक लिया इस नदी में बहने से खुद को
डूबना बेहतर लगा
सूखे किनारे पर पहुंचने से
और तुम्हे लगा कि मैं बदल गया
बदला नहीं बस इतनी सी बात है
तुम्हे गिरता देखने से पहले संभल गया

और हां एक आखिरी बात दोहराऊंगा फिर से
तुम हर बात में बिलकुल सही थीं
मैं कुछ भी लिखूं मगर
तुम्हारी कुछ भी गलती नहीं थी

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