कई लोगों से सुनता हूँ कि किस्मत साथ
नहीं दे रही या फिर किस्मत ख़राब है, पर मेरा ये मानना है कि जब इंसान को अपनी गलतियां थोपने के लिए कोई
ना मिला तो उसने किस्मत का आविष्कार किया।
वास्तव में मेरा किस्मत के बारे में ये
मानना है कि किस्मत की अहमियत उतनी नहीं है जितनी की अक्सर हम माना करते हैं।
किस्मत का महत्व अगर किसी के लिए है तो वो है एक कर्महीन मनुष्य।
क्युंकी गीता में जब श्री कृष्ण
ने ये स्पष्ट कहा है कि हमें अपने कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है तो इसका मतलब
तो यही हुआ कि अपनी किस्मत के निर्माता हम खुद हैं और जिस चीज़ के निर्माता हम खुद
हैं उसे अच्छा या बुरा कहना तो खुद को ही अच्छा या बुरा कहना हुआ।
जब हम अच्छे कर्म करते हैं तो
हमें अच्छा फल मिलता है और हम उसे अच्छी किस्मत का नाम दे देते हैं और ठीक ऐसा ही
बुरे कर्म करने पर भी होता है।
यदि किसी चीज़ का परिणाम हमारी आशा
के अनुरूप नहीं है तो इसका मतलब यही है कि हमारे प्रयासों में कही न कही कोई कमी
रह गई है ना की हमारी किस्मत ख़राब है।
हाँ, किस्मत का महत्व तभी है जब हम कोई
कर्म नहीं करते या कर्म तो करते हैं पर इंतज़ार नहीं करते। जब कर्म नहीं करते और
उसका फल हमें अच्छा मिल जाये तो शायद हर कोई यही सोचेगा कि किस्मत अच्छी है
पर मेरे ख्याल से वह भी हमारे पहले किये हुए किसी अच्छे कर्म का ही नतीजा है जो
हमें अब मिल रहा है।
और या फिर हम कर्म तो करते हैं पर
फल की अपेक्षा बहुत जल्दी कर लेते हैं। जब हमें फल नहीं मिलता तो सोचते हैं किस्मत ख़राब है और
क्या पता उसका नतीजा हमें तब मिले जब वाकई में हमें उसकी जरुरत हो या फिर बाद में
सूद समेत और भी बेहतर होकर मिले और तब हम सोचे कि हमारी किस्मत कितनी अच्छी है
क्युंकी तब तक हम अपने कर्म को भूल चुके हों।
निष्कर्ष रूप में कहूँ तो हम अपने
ही कर्म के आधार पर कभी किस्मत को अच्छा तो कभी बुरा बनाते है पर उसकी तह में जाएँ तो उसकी
वजह हम ही हैं।
एक बात और, ईश्वर का महत्व इसलिए भी है
क्यूंकि उसे पता है कि हमें किस चीज़ की जरुरत कब है और वो उसी अनुसार हमारे कर्मों
के परिणाम निर्धारित करता है।
विचार व्यक्त करना मेरा अधिकार है
और उससे मानना या ना मानना आपकी स्वतंत्रता।
हमेशा की तरह आपके प्रत्युतर की प्रतीक्षा रहेगी ताकि अपने
विचारों में स्पष्टता ला सकूँ।
जय हिन्द। जय भारत।