पशु कहूँ, हैवां कहूँ या कोई लाऊं लाऊं शब्द
नवीन
मानव कैसे कहूँ तुझे, जब मानवता रही नहीं
क्रूर कहूँ, जालिम कहूं, दुष्कर्मी, हृदयहीन
खून तेरा पानी हुआ, जो तू पिघला ही नहीं
एक पल भी ना सोचा तूने, तू भी बेटा है, भाई है
जो तूने हैवां होने की अब सारी
हदें गिराई हैं
सोचा ना तूने इस तन में, एक दिल भी हर दम रहता है
उम्मीदें रखने वाला तुझसे, एक पिता तेरे घर बसता है
हर ख्वाहिश, दुआ जो तुझे मिली, उन सबकी साख गवाई है
हम मानव हैं, कोई चीज़ नहीं, तूने ये बात भुलाई है
बेशर्म कहूँ, पापी कहूँ, तू दया हया विहीन
मानव कैसे कहूँ तुझे,जब मानवता रही नहीं
जबसे तेरी ये रूह बिकी, हर कदम पे तू शैतान हुआ
तेरे जैसों के कारण ही, हर पुरुष यहाँ बदनाम हुआ
कैसे दिलवा पाउँगा मैं, अब यकीं यहाँ हर लड़की को
कल सबने देखा है उसको, उस बहन का जो अंजाम हुआ
हर शख्स यहाँ मुजरिम लगता, ये तेरी ही तो कमाई है
इंसानियत शर्मसार करने की कसम तूने खाई
है
जल्लाद है तू, दुष्ट कहूँ, दानव खर, कुलहीन
मानव कैसे कहूँ तुझे, जब मानवता रही नहीं