मुझे पता है तुम
वही करोगे फिर से
चुनाव
आते ही
वही वादे
फिर से,
वही
घोषणाएं फिर से
मगर
नहीं समझोगे कि
दिल
तोड़कर जोड़ने से
रह
जाती है दरारें
झांकते हैं जिनमे से
जख्म, दर्द, हर वक्त
तन पर कपड़ा डालने से
नहीं
लौट आती लुटी आबरू
ना
ही अब खाना देने से
आ
पायेगी लौट कर
उन
भूखी रातों की नींद
तुम
समर्थ हो
सब
कुछ भूल कर
मुस्कुराने में
मगर
हमने तो सहा है सब
कैसे भूलेंगे हर पल
टूटते सपनो
को
अपनी
मजबूरियों को
भूख
से नीचे दब कर
देश
के लिए कुछ ना
कर
पाने की बेबसी को
मगर
तुम नहीं समझोगे ये सब
करोगे
ढोंग अच्छे बनने का फिर से
और
भी सब कुछ वही फिर से
जो
करते हो हर बार
चुनाव आते ही