Wednesday 2 October 2013

धर्म का अपमान

हालाँकि धर्म और राजनीती पर ना तो कोई बहस की जा सकती है और ना ही कभी एकमत हुआ जा सकता है मगर फिर भी अपनी बात आपके बीच रखना चाहूँगा, आप इसे ठुकरा देने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र हैं। कई दिनों से देख रहा हूँ कि कोई भी घटना होती है तो कुछ लोग उसे हिन्दू धर्म से जोड़ देते हैं और साथ ही अपनी भावनाएं आहत कर के उसे पूरे धर्म के अपमान के तौर पर दर्शाने लगते हैं। मुझे उस वक्त लगता है जैसे या तो उनकी धार्मिक भावनाएं इतनी कमज़ोर हो गई हैं कि उन्हें कोई भी आहत कर सकता है या फिर किसी और संप्रदाय द्वारा अपनी भावनाएं आहत करने की यह एक नक़ल मात्र है। उनका तर्क होता है कि जब इस्लाम पर कोई पिक्चर बनती है और उसके विरोध में यहाँ हंगामा होता है, यहाँ सार्वजनिक सम्पति को नुकसान पहुँचाया जाता है तो हम भी क्यूँ ना ऐसा ही करें ताकि अगली बार कोई हमारे धर्म का अपमान करने से पहले सौ बार सोचे। मगर मेरा मानना है कि जो गलत है उसकी नक़ल कर के अपने आप को सही साबित नहीं किया जा सकता और जिस धर्म का अपमान हो जाये उस धर्म को ही मिटा देना चाहिए,व्यक्ति का अपमान हो सकता है मगर धर्म का नहीं, आप स्वतंत्र है किसी भी धर्म को मानने के लिए, कोई धर्म आपको बाध्य नहीं करता मानने के लिए, हाँ उसको मानने वाले जरुर कर सकते हैं फिर चाहे वो खुद उसकी हर अच्छी बात को मानते हो या नहीं। रामलीला नाम रखने से और उसके अन्दर हिंसा या आपत्तिजनक दिखाए जाने से तो आपकी भावनाएं आहत होती हैं मगर कोई राम नाम का व्यक्ति खुद राम नाम का मजाक उडाये तब आपकी भावनाएं आराम करती हैं, या फिर तो ऐसा कीजिये ना कि जो भी जेलों में बंद अपराधी हैं उनमे जिनका भी नाम भगवान् के नाम पर है, उसे बदल दीजिये, अगर अपने बेटे का नाम राम रख रहे हैं तो उसे राम जैसे संस्कार दीजिये, और सिर्फ इस नाम की पिक्चर का ही क्यूँ, हर आपत्तिजनक चीज़ का बहिष्कार कीजिये ना। दिखावटी विरोध बंद करो, आपको सिर्फ इसलिए आपत्ति हैं क्यूंकि उसका नाम हमारे धर्म से जुड़े शब्द पर रखा गया हैं, और अगर नाम बदल दिया जाए तब उसमे कुछ भी आपत्ति नहीं फिर आप आराम से उस पिक्चर को देखने जा सकते हो, अजीब सोच है आपकी। वैसे मुझे लगता है कि शब्दों पर, व्यक्तियों पर और प्रतीकों पर अपनी आस्थाएं टिका देने की बजाय हम हर बात में निहित विचार से जुड़ाव रखें, पूजा हो तो उस विचार की ना कि उससे जुड़े प्रतीक की। क्यूंकि जिस दिन प्रतीक खंडित होगा, हमारी आस्था भी खंडित हो जाएगी मगर विचार सदा जीवित रहता है और उसी तरह हमारी आस्था भी सदा जीवित रहेगी, फिर ना तो कोई अपमान ना किसी की भावनाएं आहत। करने दो जो करते हैं, आपको आपत्ति है कि क्यूँ वो अभिनेत्री का नाम राधा रख कर उससे अश्लील नृत्य कराते है जबकि कभी फातिमा नहीं रखते, आपको भी पता है कि वो ऐसा क्यूँ करते हैं, सिर्फ और सिर्फ डर की वजह से, तो आप क्या चाहते हैं कि वो आप से भी डरें या उस भगवान् से डरें, क्यूंकि यदि आप चाहते हैं कि वो भगवान् से डरें तो फिर ये फैसला भी भगवान् के हाथ में ही क्यूँ ना छोड़ दिया जाए कि उसकी सजा वो ही निर्धारित करें। भगवान् इतने कमजोर तो नहीं कि कोई भी उनका अपमान कर सके। जब वसुधैव कुटुम्बकम की बात करते हो तब क्यूँ किसी और वर्ग को अलग कर देते हो, जब पूरी सृष्टि को उसी ने बनाया है और वो ही सबका पिता है तो आप कौन होते हैं उसी की बनाई हुई कृतिओ में भेदभाव करने वाले। और यदि आप फिर भी भेदभाव करते हो तो फिर क्या आप खुद उनका अपमान नहीं कर रहे। बात सोचने वाली है, यदि नफरत फैलाने से फुर्सत मिले तो अमन के बारे में भी जरा सोच कर देखना, अच्छा लगता है।

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