काफी वक्त पहले एक कविता लिखी थी बुजुर्ग दिवस पर, आज याद आ गई तो आप भी पढ़िए,एक दादा का अपने पोते के नाम पत्र:-
भूला नाता
हरपल हरदम खुश ही रहो तुम
उदासियाँ हो जाएँ अब गुम
आज का पावन सा है ये दिन
बिता रहा हूँ खुशियों के बिन
पास हो मेरे, नहीं तुम्हारे
पास बचा है समय जरा सा
इसीलिए मन मेरा है किया
ख़त लिख दूं एक प्यार भरा सा
पैदा होते ही दादी ने
तुमको जब मुझको सम्भलाया
रूई से कोमल थे तब तुम,
देख कर मेरा दिल भर आया
कठोरता से भरे हुए इन
हाथों से तुम्हे लग ना जाये
धीरे धीरे यही तो एकदिन
अनायास ही लत बन जाए
घुटनों चलने लगे थे जब तुम
हर पल पीछे मेरे आते थे
जहाँ चला जाता था मैं फिर,
तुम भी वहीँ चले आते थे
साथ तुम्हारा चाहता था मैं,
चाहता हूँ मैं तो ये अब भी
बस में मेरे नहीं है अब कुछ
बदल गया है अब तो वक्त भी
पढने लिखने में गये तुम
दिल-ओ-जान से हो मशगूल
मम्मी पापा भी चाहते हैं यही,
दादा को तुम गये हो भूल
पास ना आना बात ना करना,
जी लेते हो अब तो मुझ बिन
कमरे में आये हुए भी
हो जाते हैं दस दस दिन
आस में बैठा रहता हूँ मैं,
तुम आओगे बात करोगे
कुछ पल के ही लिए सही बस
तुम तो मेरे साथ रहोगे
पिछले साल तक जो
बादामों का चूरा मुझसे खाते थे
हर दिन उसको खाने के लिए ही
सामने तुम मेरे आते थे
पिछले कई दिनों से उसको
खाना तो दूर, बनाता नहीं
क्यूंकि बिना तुम्हारे मुझसे
अब वो खाया जाता नहीं
बात ज़रा सी है ये इतनी
लेकिन तुमको पता नहीं है
मेरी बूढी आँखों में झाँकने
के हेतु जो वक्त नहीं है
मम्मी पापा दोनों तुम्हारे
देर शाम तक करते नौकरी
याद तुम्हे कर पायें कैसे,
समय जो उनके पास है नहीं
लेकिन मैं तो दिन भर घर में
बैठ के क़दमों को सुनता हूँ
तुमसे ही बातें करने के
नए नए सपने बुनता हूँ
बेटा इतनी सी है तमन्ना,
दूर मेरा तुम एक गम कर दो
टीवी इन्टरनेट के वक्त में
थोडा वक्त तुम तो कम कर दो
उस थोड़े से वक्त के लिए,
पास मेरे तुम तो आ जाना
दोस्त के जैसे बात करेंगे,
भूल जायेंगे सारा जमाना
अंत में ख़त का करता हूँ अब,
प्यार सहित तुम्हारा दादा
पूरी कर दो छोटी सी ख्वाहिश,
याद करो ये भूला नाता