Friday 27 September 2013

तिरंगे के तीन रंगों का मतलब

बहुत हुआ बच्चों को बहकाना, झूठे अर्थ समझाना। बचपन से सुनता आ रहा हूँ तिरंगे के तीन रंगों का मतलब:- केसरिया त्याग और बलिदान का प्रतीक, सफ़ेद शांति का प्रतीक और हरा धरती की हरियाली का प्रतीक। मगर आज जाकर इसका सही अर्थ समझ आया है। जब से अंग्रेज आये है (उससे पहले से हो तो भी मुमकिन है) धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाया जा रहा है वो भी सिर्फ और सिर्फ राज करने के लिए, वैसे और अधिक साफ़ साफ़ कहूँ तो हिन्दू और मुसलमान को ही लड़ाया जाता है बाकि धर्मो से कोई लेना देना नहीं। और इंसान ने धर्म के नाम पर हर चीज़ का बंटवारा किया फिर चाहे रीती रिवाज़ हो चाहे मान्यताएं। और इसी कड़ी में उन्होंने प्रकृति के रंगों का भी बंटवारा कर दिया, केसरिया या यूँ कहे भगवा हिन्दू ने लिया और हरा मुसलमान ने, इसका कारण मुझे नहीं पता। और तब से कुछ इंसानों द्वारा दोनों के बीच शांति स्थापित करने के प्रयास किये जा रहे हैं। जब आज़ादी की लड़ाई चल रही थी तब भी अंग्रेजों के साथ साथ सत्ता के लालची लोगों ने सत्ता पाने के लिए इसी चाल को अपनाया क्यूंकि किसी इंसान को धर्म के नाम पर आसानी से बेवकूफ बनाया जा सकता है, यदि हम किसी को कहें कि ऐसा किसी वैज्ञानिक ने कहा है तो हो सकता है कि वो उस पर कोई प्रश्न चिन्ह लगाये मगर यदि ऐसा कह दिया जाए कि ऐसा हमारे धर्म ग्रंथों में लिखा है तो सारे सवालों की गुंजाइश ही ख़त्म हो जाती है। तो बस इसी चीज़ का फायदा उठा कर इन्हें आपस में लड़ाया जा रहा है। बात जब राष्ट्रीय ध्वज बनाने की आई तो इसी बात को ध्यान में रख कर तिरंगा बनाया गया ताकि समाज के हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो सके यानी की सबसे ऊपर भगवा हिन्दुओं का प्रतीक, सबसे नीचे हरा मुसलमानों का प्रतीक और बीच में सफ़ेद उनमे आपस में शांति बनाये रखने का प्रतीक। अब इस अर्थ में कितनी सच्चाई है ये तो मैं भी नहीं जानता मगर मुझे यही सच लगता है, बाकि यदि आप चाहे तो वही बचपन वाला अर्थ मानते हुए खुश रह सकते हैं।

Wednesday 25 September 2013

क्यों तलाशते हो तुम

क्यों तलाशते हो तुम मुझे मेरी हर कविता में 
कि जैसे लिखी हो मैंने सब अपने ही अनुभवों से 
कभी किसी कविता में बेवफा खुद को पाती हो 
और दर्द भरे दिल को मुझसे जोड़ बैठती हो 
कभी मेरी यादों को जोडती हो हमारी गुजरी बातों से 
उस कविता में हंसने वाले दोनों जैसे हम ही हो 
क्यूँ हर कविता में वो लड़की तुम होती हो 
और हर वो तन्हा सा लड़का मैं ही 
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं 
ना मैं तन्हा हूँ, ना अकेला और ना ही दुखी 
बल्कि मस्त हूँ अपनी ही मस्ती में  
वो शख्स कोई और है 
उसे किसी और ने धोखा दिया है 
ना तुम हो, ना मैं 
तुम तो मुझमे हर वक्त हो फिर क्यूँ रहूँ मैं दुखी 
बदल डालो हर कविता का मतलब 
और देखो उन दोनों तन्हा लोगों को 
मेरी तरह सड़क किनारे से 
और रहो खुश क्यूंकि मैं हूँ 
अब भी तुम में ही 

Saturday 14 September 2013

हिंदी दिवस

आज हिंदी दिवस है, 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को राजकाज की भाषा घोषित किया गया और हम पागलों की तरह उसे राष्ट्रीय भाषा मान बैठे और उसे अपने स्वाभिमान से जोड़ बैठे, ये तो भला हो उस इंसान का जिसने कुछ दिन पहले एक आरटीआई के माध्यम से ये जवाब पाया कि हिंदी राजकाज की भाषा है, राष्ट्रीय भाषा नहीं। सच में अब दिल को कुछ सुकून आया, कम से कम कुछ तो बोझ हल्का हुआ दिल का, अब शायद हिंदी दिवस पर लोगों के भाषण के बाद "थैंक यू" सुन कर बुरा नहीं लगेगा, क्यों बुरा लगे भाई कौनसी अपनी राष्ट्रीय भाषा है, राजकाज की भाषा थी वो भी आजकल अंग्रेजी में होने लगा है। मुझे लगता है अब वक्त गया है जब हमें इंग्लिश को हमारी राष्ट्रीय भाषा घोषित कर देना चाहिए, कम से कम हम अंग्रेजी बोलने (झाड़ने) वालों के गर्व और अंग्रेजी ना जानने वालों की हीनता को तो न्यायोचित ठहरा पाएंगे, मानसिकता तो अब बदलने से रही, एक हज़ार साल की गुलामी है साहब, अब हमें गुलामी ही रास आती है, किसी अंग्रेज के सामने ना सही, अपनी गली के दुकानदार के सामने तो अंग्रेजी झाड़ सकते हैं।

उस हिंदी को राष्ट्रभाषा मान कर भी क्या फायदा जब किसी की बेईज्जती होती है तो भी कहतें है कि बेचारे की "हिंदी" हो गई। कल किसी से बात की किसी मुद्दे पर तो उसने कहा, " वो क्या है ना 'सर', 'एक्चुअली' लोग बहुत 'इमोशनल' हो गये हैं, उन्हें आप किसी भी दिशा में 'डाइवर्ट' कर सकते हो। ये तो केवल एक पंक्ति है बातचीत की, आप अनुमान लगाइए कि पूरी बात किस भाषा में हुई होगी जिसे ना तो हिंदी कह सकते हैं और ना ही इंग्लिश और यहाँ तो लोग साथ में गुजराती भी 'घुसा' देते हैं। तब तीनों भाषाओँ के मेल से जो खिचड़ी तैयार होती है उसे पता नहीं क्या कहते है मगर ऐसा जरुर लगता है कि दिन ब दिन उसमे अंग्रेजी की मात्रा बढती जा रही है और एक दिन सिर्फ वही बोली जाएगी तब शायद सरकारी विद्यालय भी 'अंग्रेजी मीडियम' होने लगेंगे। फिर पता नहीं निजी विद्यालयों वालों की दुकाने कैसे चलेगी।
अरे मैं तो बहुत दूर तक पहुँच गया। खैर आप लोग अपना दिन 'एन्जॉय' कीजिये, मैं अपना काम करता हूँ। क्यूँ दिल पर लें, हम तो ठंडे लड़कों और गरम लड़कियों वाले जमाने से हैं ना, ओह मेरा मतलब कूल डूड्स और हॉट बेब्स से था, गलती से उनकी हिंदी हो गई। हिंदी दिवस पर ख़ुशी मनाएं या मातम ये सवाल ऐसे ही रहने देते हैं।

अच्छा जी तो जाते जाते आप सभी को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं। हैप्पी हिंदी डे।