Tuesday 26 July 2016

दुखी आत्मा


कुछ लोगों को दुखी रहने की इतनी आदत हो जाती है कि वो बहाने ढूंढते हैं दुखी होने के, जैसे कोई जोंक शरीर पर चिपक जाता है बिल्कुल सख्ती से वैसे ही ये लोग दुःख को पकडे रहते हैं। कोई कितना भी कोशिश कर ले उनका ध्यान भटकाने का, उनके मन को दूसरी दिशा में ले जाने का मगर जैसे इलास्टिक कितना भी खींच कर छोड़ने पर वापस अपनी जगह पर चला जाता है वैसे ही वे भी सारी बातें ख़त्म होते ही वापस दुःख की बात याद कर के दुखी हो जाते हैं। एक सेकंड में वो सारी खुशियां सारी अच्छी बातें भूल जाते हैं। उन्हें याद रहती है तो बस वो बात जो उन्हें दुखी करे। या तो इन्हें दुःख से खुद को तकलीफ देने में मजा आता है या फिर सहानुभूति पाने में।
मगर जो भी हो एक बात तय है कि इनका ईश्वर पर भरोसा नहीं होता या खुद पर भरोसा नहीं होता। मैं ये सोचता हूँ कि ईश्वर जो भी करता है अच्छे के लिए करता है , अब चाहे ईश्वर को न मानने वाले इसे मेरा भ्रम कहें मगर ये भ्रम भी अगर मुझे मेरे गम भुला कर आगे बढ़ने और उम्मीद को जिन्दा रखने में मदद करता है तो क्या हर्ज है ऐसा भ्रम रखने में।
ऐसे लोग खुद तो दुखी होते ही हैं साथ ही अपने आस पास के लोगों को भी अपनी नकारात्मक ऊर्जा से दुखी करते हैं। उनका लटका हुआ चेहरा देख कर उनके प्रियजन भी दुखी महसूस करते हैं। मगर न तो इन्हें उसकी परवाह और न ही खुश रहने की चाह। ये लोग इतने स्वार्थी होते हैं कि दूसरों की ख़ुशी के खातिर भी खुश नहीं रह सकते फिर चाहे पूरी दुनिया इनके दुख से दुखी होती रहे। हर छोटी से छोटी बात जो इन्हें दुखी कर सकती है वो ये लपक लेते हैं और हर बड़ी से बड़ी बात जो इन्हें खुश कर सकती है उसे इग्नोर कर देते हैं। कुल मिलाकर ऐसे लोग धीरे धीरे सबको मजबूर कर देते हैं उन्हें अकेला छोड़ने के लिए और यही इनकी इच्छा होती है मगर ये आज तक पता नहीं चला कि आखिर ऐसा कर के ये चाहते क्या हैं और इन्हें क्या मिलता है। खैर भगवान् ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दे और मुस्कुराने की हिम्मत प्रदान करे।